गगन धरा की सेतु सुंदरी,पूंछ रहा है तुमसे भूतल
वर्षे! तुम आंसू हो या जल!
सुन चातक की करुण पुकारें
तू उमड़ी फिर उठी गगन में,
फिर कोई मछली तडपी क्या
जो बिजली चमकी अंग-अंग में,
या दादुर का क्रंदन सुन-सुन
फूट-फूट रोया बादल!
वर्षे! तुम आंसू हो या जल!
धरती के प्यासे अधरों ने
तुम्हे पुकारा फिर फिर भू पर
नेह-निमंत्रण तुम्हे दिया क्या
पवन झकोरों ने भी छूकर,
या फिर तुमको खींच बुलाया
रुंधे स्वरों में सागर विह्वल!
वर्षे! तुम आंसू हो या जल!
फिर से तट पर बंधी नावं ने
भेज दिया तुमको आमंत्रण
सूखी नदियाँ आ लहरा दो
भीग जाए तन-मन का कण कण ,
ललचाया नाविक फिर लखकर
कजरारे मेघों का आँचल!
वर्षे! तुम आंसू हो या जल!!
"असीम"
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