लौटी नावें मंथर मंथर सांझ हुई
मछुवारे ने जाल समेटा सांझ हुई
लौटी नावें मंथर मंथर सांझ हुई !!
प्राची सन्देश आँख में लेकर लौटे बन पांखी
पश्चिम नयन टिकाये बैठा प्रिय मिलन का चिर अभिलाषी!
अधरों पर अरुणाई आई प्रहर युगल का लख मधु गोपन
धरती अम्बर मंद हास में महामिलन के बनते साखी!!
"चकवी की कम्पित आँखों में सांझ हुई"
लौटी नावें मंथर मंथर सांझ हुई !!
बूढ़े बरगद की परछाई बढ़ी देखने मिलन सुहाना
याद आ गए खुले चंचु तब लौटे पंछी लेकर दाना,
कंधे पर झोली लटकाए उंगली में बन्दर की डोरी
शीश झुकाए चला मदारी बुनता कल का ताना बाना!!
"बंजारन के थके पावं में सांझ हुई"
लौटी नावें मंथर मंथर सांझ हुई !!
दीपक लेकर चला पुजारी हरने मंदिर का सूनापन
बजी घंटियाँ क्षीण स्वरों में गूँज रहा हर घर का आँगन,
कर सोलह श्रुंगार उदासी त्याग अधर पर स्मित लेकर
चली रिझाने भोगी मन को नगर वधु की नियति सनातन!!
"सिसक-सिसक कर बाजे घुंघरू सांझ हुई"
लौटी नावें मंथर मंथर सांझ हुई !!
"असीम"
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